इस पुस्तक पर डॉक्यूमेंट्री टाइप बहुत ईमानदारी
से, एक डिस्कवरी की तरह नेहरू जी ने लिखा था। पर वो अलग चीज़ है। लेकिन आनंद जी ने अपनी
तटस्थ दृष्टि से बिना किसी के चश्मे के प्रभाव में आके, जिस तरह से तथ्यों को एक दूसरे
के सामने रखा है, इस पर एक सीरियल बनना चाहिए और वो सीरियल जनता तक जाना चाहिए।
अन्य भारतीय भाषाओं में भी इसका अनुवाद हो।
कोई भी लेखक हो, किसी भी राजनीतिज्ञ से ज्यादा
बड़ा लेखक है।
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